हर्यक राजवंश

हर्यक राजवंश | Haryanka dynasty information in hindi

प्राचीन भारत छोटे – बड़े साम्राज्योका एक विशाल देश था इन्ही साम्राज्योमे हर्यक राजवंश यह एक साम्राज्य था। यह तब की बात है जब इंडियन सब कॉन्टिनेन्ट दो प्रमुख हिस्सों में बटा हुआ था। जनपद यानी छोटे राज्य और महाजनपद यानी बडे साम्राज्य इन सोलह महाजनपदो मे से एक था। मगध महाभारत और पुराणो के अनुसार जरासंध के पिता बृहद्रथ ने बृहद्रथवंश की स्थापना की जो मगध पर राज करने वाला पहला राजवंश था, पर इस राजवंश का कोई पुरातात्विक साक्षनही है, लेकिन साक्ष के साथ जो बात कही जा सकती है वो यह है कि 50044 ई मे हर्यक राजवंश के राजा बिंबिसार ने केवल 15 साल की आयु मे मगध के सिंहासन पर विराजमान हुए और इन्होंने ही मगध को सही वो प्रतिष्ठा दिलायी जिसके बदोलत मगध पूरे भारतीय उपमहाद्वीप मे एक ताकतवर साम्राज्य बनकर उभरा।

मगध महाजनपद प्राचीनकाल से ही राजनीतिक उत्थान, पतन एवं सामाजिक-धार्मिक जागृति का केंद्र-बिंदु रहा है। छठीं शताब्दी ई. पू. के सोलह महाजनपदों में से एक मगध बुद्धकाल में शक्तिशाली व संगठित राजतंत्र था। इसकी राजधानी गिरिव्रज थी। इस राज्य का विस्तार उत्तर में गंगा, पश्चिम में सोन तथा दक्षिण में जगंलाच्छादित पठारी प्रदेवा तक था। कालांतर में मगध का उत्तरोत्तर विकास होता गया और भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के विकास की दृष्टि से मगध का इतिहास ही संपूर्ण भारतवर्ष का इतिहास बन गया।

हर्यक राजवंश का शासनकाल 544 ईसा पूर्व से 414 ईसा पूर्व तक था। हर्यक राजवंश की पहले राजधानी राजगृह थी बादमें वह पाटलिपुत्र बन गई। उनके साम्राज्य में संस्कृत, मागधी प्राकृत और अन्य प्राकृत भाषाएँ चलन मे थी। हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म यह धर्म उनके राज्य में मुख्य धर्म थे।

हर्यक राजवंश के शासकों की सूची

1.बिंबिसार ( 544 – 492 ई.पू ) – प्रद्योत राजवंश के आखरी महाराजा वर्तिवर्धन की हत्या करने के बाद हर्यक राजवंश की स्थापना की।

2.अजातशत्रू ( 492–460 ई.पू. ) बिंबिसार का पुत्र

3.उद्यन ( 460–440 ई.पू. ) अजातशत्रू का पुत्र

4.अनिरुद्ध ( 444 – 440 ई.पू. ) उद्यन का पुत्र

5.मुंडा ( 440 – 437 ई.पू. ) उद्यन का पुत्र

6.नागदशक ( 437- 413 ई.पू. ) उद्यन का पुत्र और हर्यक राजवंश का आखिरी राजा

बिंबिसार

बिंबिसार बचपन से ही एक काबिल सेना प्रमुख थे। राजा बनते ही उन्होंने अपने पिता के शत्रू यानी अंग प्रदेश के महाराज ब्रह्मदत्त को हराया और अंग प्रदेश पर कब्जा जमा लिया। इस जित से मगध के लिए समुद्री मार्ग से व्यापार करना बेहद आसान हो गया, जिससे मगध साम्राज्य और भी जादा समृद्ध और बलशाली हो गया। बिंबिसार दुरदर्शी और कुशल रणनितीज्ञ भी थे, इसी के चलते उन्होंने बडे साम्राज्यो से लढणे की बजाये उनसे रिश्ता जोड लिया।

कोशल की राजकन्या कौशलदेवी से विवाह करणे पर उन्हे दहेज मे काशी शहर मिला, जिसकी वजह से मगध की आय मे काफी इजाफा हुआ, फिर वृद्धी के लिच्छवी राजवंश की राजकन्या झेलनासे और मध्य पंजाब के मंत्री राजवंश की कन्या शमा से विवाह करके उन्होने इन दोनो राज्य से गटबंधन बना लिया। इन साम्राज्य का सहायता लेकर बिंबिसार ने अपनी नजर गडायी अवंती साम्राज्य पर लेकिन जब कई लढायो के बाद भी कोई नतीजा नही निकला तब बिंबिसारने अवंती साम्राज्य के राजा प्रद्योत की और दोस्ती का हात बढाया वह कहते है ना जिसे आप हरा ना सको उसे अपना दोस्त बना लो।

बिंबिसार की महानतम उपलब्धी थी उनका बनाया गया प्रशासन। माना जाता है कि मगध साम्राज्य मे ८००००० गाव थे। हर एक गाव की अपनी विधानसभा थी, जिसका एक ग्राम व्यवस्थापक हुआ करता था, उसे ग्रामक कहा जाता। बिंबिसारने उचित कर संग्रहण के लिये अधिकारीयो की कमान शृंखला बनाई थी। इसी के साथ न्याय व्यवस्था, सैन्य और वित्तीय प्रशासन के लिए भी उन्होने उच्च पदस्थ अधिकारी नियुक्त किए।

बिंबिसारने अपनी प्रजा और साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए सैन्य के साथ साथ अंग प्रदेश में नौसेना भी बनाई। महाराज बिंबिसारने बौद्ध और जैन इन दोनों धर्मप्रवाहो का समर्थन करते हुए इन धर्म के अनुयायियों के लिए कयी मुफ्त सुविधाये उपलब्ध करायी। इन्हीं कारणों की वजह से बिंबिसार को लोगो के राजा माने जाते थे, पर उनके के नसीब मे भी इन सारी सुख-समृद्धी के परे गहरा अंधकार लिखा था।

कुछ मान्यताओं के नुसार कहा जाता है कि बिंबिसार उसके प्रारंभ के काल मे लिच्छवियों का सेनापति था जो की उस समय में मगध पर लिच्छवी शासन किया करते थे। बिंबिसार के राज्य शासन में कुछ पदाधिकारी भी थे उनके नाम यह थे जैसे की उपराजा, मांडलिक, सेनापती, महामात्रा, व्यावहारिक महामात्रा, सब्बयक महामात्रा और ग्रामभोजक। जैन धर्म के साहित्यो मे बिंबिसार का नाम ‘श्रेणिक’ है। बिंबिसार गौतम बुद्ध से भी मिला था। उनसे मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म का स्विकार किया। 

अजातशत्रू

बिंबिसार अपने बेटे आजातशत्रू को अपना उत्तराधिकारी मानते थे जिसके चलते उन्होने आजातशत्रू को अंग प्रदेश की जिम्मेदारी सोपी थीश जो आजातशत्रू ने बखुभि निभाई परंतु महत्त्वाकांशी अजातशत्रू की अपनी पिता के पूरे साम्राज्य पर नजर थी। बुद्धिस्ट सोर्सेस के अनुसार गौतम बुद्ध के विरोधी देवदत्त के उकसाने पर आजातशत्रू ने अपने पिता की हत्या कर दी हालांकि जैन धर्मग्रंथों के अनुसार अजातशत्रु ने अपने पिता को सिर्फ बंदी बनाया था जिसके बाद बिंबिसार ने खुदखुशी कर ली। इसी सदमे में उनकी पत्नी कौशल देवीने प्राण त्याग दिया, इस बात से क्रोधित होकर कौशलदेवी के भाई प्रसेनजित ने अजातशत्रु से काशी वापस छिनली।

इस मुद्दे को लेकर आदर्श शत्रू और प्रसंगीत के बीच मे युद्ध हुआ और प्रसेनजित ने अजातशत्रू को बंदी बना लिया। प्रसेनजित ने आखिर अजातशत्रु से समजोता कर लिया और शांति बनाये रखने के वादे पर अजातशत्रू को रिहा कर दिया दोनो राज्य मे संबंध बनाये रखने के लिए प्रसेनजीत ने अपनी 17 साल की बेटी वाजिरा का विवाह अजातशत्रू से कर दिया और दहेज मे फिर एक बार अजातशत्रू को काशी वापस मिल गई। प्रसेनजित के मृत्यु के बाद अजातशत्रूने आक्रमण करके कौशल को मगध साम्राज मे शामिल कर लिया कौशल के बाद अजातशत्रू ने रूख किया वज्जि साम्राज्य की ओर उसकी राजधानी वैशाली पर आक्रमण किया और वज्जि साम्राज्य को मगध मे शामिल कर लिया।

अजातशत्रू का एक नाम ‘कुणिक’ भी था वह बहोत महत्वकांक्षी और साम्राज्यवादी थी था। अजातशत्रू के मगध पर शासनकाल के दौरान ही भगवान महावीर और गौतम बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ। अजातशत्रू ने 32 वर्षों त पर शासन किया। अजातशत्रू एक उदारमतवादी धार्मिक सम्राट था। उसने अपने शासनकाल के आठवें वर्ष मे गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अवशेषों पर राजगृह मे स्तूप का निर्माण करवाया था।

उद्यन

इतिहास फिर अपने आपको दोहरा राहा था अजातशत्रू के बेटे उद्यन ने अपने पिता अजातशत्रू की हत्या कर मगध की सत्ता हतिया ली। बौद्ध ग्रन्थों में उदयन के तीन पुत्रों का उल्लेख है – अनिरूद्ध, मुंडक और नागदशक। इन तीनों को पितृहन्ता कहा गया है, जिन्होंने बारी-बारी से राज्य किया। बोद्ध इतिहास के अनुसार उद्यन के बाद हर्यक साम्राज्य के हर एक राजा को अपने पुत्र के हातो ही मरना पडा। ये तीनों शासक अत्यन्त निर्बल एवं विलासी थे। अतः शासन तन्त्र शिथिल पड़ गया। चारों और षड्यन्त्र और हत्याये होने लगी। फलस्वरूप जनता में व्यापक असन्तोष छा गया। इनके शासन के विरूद्ध विद्रोह हुआ तथा जनता ने इन पितृहन्ताओं को सिंहासन से उतार दिया। इसी राजनैतिक अस्थिरता के कारण जनता मे बहुत नाराजगी थी। 

अजातशत्रू ने अपने शासन काल मे उद्यन को चंपा का उपराजा घोषित किया था। उद्यन ने सोन नदी और गंगा नदी के संगम पर पाटलिपुत्र नगर बसाया और अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित कि। उद्यन जैन धर्म अनुयायी था और उसने एक जैन चैत्यगृह का निर्माण भी करवाया था।

हर्यक साम्राज्य के आखरी सम्राट नागदशक को उसी की प्रजाने मार डाला। उदायिन के उत्तराधिकारियों ने लगभग 412 ई.पूर्व तक राज्य किया। अन्तिम राजा नागदशक कुछ प्रसिद्ध था। पुराण में उसे ‘दर्शक’ कहा गया है। शिशुनाग नामक एक योग्य अमात्य को राजा बनाया। उदय हुआ एक नए साम्राज्य का शिशुनाग साम्राज्य।

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